अपने, अपनों से बिछुड़ गए। हाथ छूट गए, सामान बिखर गया। भीड़ इस तरह बेकाबू हुई कि नीचे गिरे लोगों को कुचलते हुए आगे बढ़ गई। जिसको जहां जगह मिली वहां भागा। महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग खुद को संभाल नहीं पाए और बिलखते नजर आए। कुछ युवक जान बचाने के लिए शेड के साथ लगी रेलिंग पर चढ़ गए। ऊधमपुर के राजेश्वर, मोहित, अजय ने बताया कि अगर वह रेलिंग पर न चढ़ते तो पता नहीं क्या होता। करीब आधे घंटे तक किसी को समझ नहीं आया कि क्या हुआ। कुछ देर के लिए हम भूल ही गए कि दर्शन के लिए भवन आए हैं। हर तरह बिखरे जूते-चप्पल खौफनाक मंजर पैदा कर रहे थे।
भवन पर जैसे ही भगदड़ थमी, फिर शुरू हुई अपनों की तलाश। रोते-बिलखते लोग भवन परिसर में अपने सगे संबंधियों को तलाश रहे थे। चीखने-चिल्लाने की आवज दिलों को चीर रही थी। इस घटना ने कइयों को सदा के लिए खो दिया और कुछ बुरी तरह घायल हो गए।
बेकाबू भीड़ के बागे प्रशासन और सुरक्षाकर्मी भी बेबस नजर आए। बाद में सभी ने स्थिति संभाली और फिर शुरू हुआ राहत व बचाव कार्य। तब तक रात का अंधेरा छट गया था और सूरज की लालिमा भी बिखरने लगी, लेकिन रात को जो हुआ, वह अपनों को खोने वालों को शायद कभी भूल नहीं पाएगा।